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किसान शैलेंद्र सिंह की सफलता की कहानी

<h2>संक्षिप्त विवरण</h2>
नाम श्री शैलेन्द्र सिंह पटेल पिता का नाम स्व0 श्री रामकिशुन ग्राम औंग विकास खण्ड मलवां जनपद का नाम फतेहपुर
07 स्थिति फतेहपुर शहर से कानपुर नेशनल हाइवे-2 पर लगा हुआ फतेहपुर से लगभग 40 किमी0 दूरी पर ग्रामसभा औंग स्थिति है
<h2>कृषक का मुख्य व्ययसाय</h2>
कृषक द्वारा मुख्य रूप से परवल, लहसुन, टमाटर की खेती की जाती है तथा अन्य औद्यानिक सहायक फसलों के रूप में आलू, खरीफ प्याज, रबी प्याज, की व्यवसायिक खेती के अलावा केवांच की औषधीय खेती 1.0 है0 क्षेत्रफल में प्रारम्भ की गयी है। आंशिक रूप से धान्य फसलें गेंहू धान एवं की भी खेती की जाती है।
<h2>आय का प्रमुख विवरण</h2>
<table>
<tbody>
<tr>
<td>
<h3>आय का प्रमुख विवरण</h3>
</td>
<td>वर्ष (2012-13) का अनुमानित शुद्ध लाभ वर्तमान</td>
<td>वर्तमान (2017-18) का अनुमानित शुद्ध लाभ</td>
</tr>
<tr>
<td>अनार</td>
<td></td>
<td>4 बीघा में लगभग रू0-200000/</td>
</tr>
<tr>
<td>लहसुन</td>
<td>6 बीघा में लगभग रू0-215000/-</td>
<td>10 बीघा में लगभग रू0-400000/-</td>
</tr>
<tr>
<td>टमाटर</td>
<td>3 बीघा में लगभग रू0-40000/-</td>
<td>4 बीघा में लगभग रू0-60000/-</td>
</tr>
<tr>
<td>परवल</td>
<td>1.5 बीघा में लगभग रू0-60000/-</td>
<td>0 बीघा में लगभग रू0-0/-</td>
</tr>
<tr>
<td>धान्य एवं अन्य फसलें</td>
<td>रू0-455000/- 4 बीघा में लगभग रू0-200000/-</td>
<td>3 बीघा में लगभग रू0-50000/-</td>
</tr>
<tr>
<td>पशुधन से आय</td>
<td>2 भैस सें लगभग रू0-40000/</td>
<td>3 भैंस से लगभग रू0-60000/-</td>
</tr>
<tr>
<td><span style=”color: #ff0000;”>योग</span></td>
<td><span style=”color: #ff0000;”>रू0-455000/</span></td>
<td><span style=”color: #ff0000;”>रू0-570000/</span></td>
</tr>
</tbody>
</table>
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<h2>आर्थिक स्थिति मे उत्तरोत्तर वृद्धि</h2>
मेरे पास बरासत में एक बीघा पांच बिशुवा मिली थी और छप्पर वाला घर था जो कि बरसात में एवं सर्दी के मौसम में पारिवार अत्यधिक कठिनाई से गुजरता था। पिता जी की बीमारी का कर्ज था और किसी से पैसे उधार मांगने पर लोग पैसा देने को तैयार नही होते थे उस समय मेरी उम्र लगभग 17 वर्ष की थी। पिता की मृत्यु के बाद नौकरी की तालाश में लुधियाना पंजाब गया था और प्राइवेट नौकरी 12-13 घण्टे करने के बाद रूपये 2500/- प्रतिमाह कमाना शुरू किया। अत्यधिक मेहनत के बाद मिलने वाली मजदूरी कम लगने लगी। परिवार से दूर रहने का कष्ट महसूस हुआ और वापस अपने गांव आ गया और गांव में आकर गाड़ी चलाने का काम किया। फिर 2007 में उद्यान विभाग के औद्यानिक विकास कार्यक्रम के प्रशिक्षण कार्यक्रम में जिला उद्यान अधिकारी, पटेल साहब से मेरी मुलाकात हुयी और उन्होने मेरी एक बीघा लगी फसल को देखा। जिसके बाद उन्होने सलाह दी की मैं लहसुन की खेती करूॅ और मैने लहसुन के साथ-साथ परवल टमाटर की भी खेती करके स्वयं बाजार में बेंचने लगा। ख्ेाती का मजा तब आया जब उद्यान विभाग से वर्ष 2008-09 में लहसुन का बीज एन0एच0आर0डी0एफ0 से मिला उसके बाद एन0एच0आर0डी0एफ0 के अधिकारियों से मेरा सम्पर्क हुआ और उद्यान विभाग द्वारा भेंजे गये सात द्विवसीय भ्रमण में मेरे द्वारा सीखी गयी तकनीकी से जब मैने लहसुन की जी-282 प्रजाति की खेती करना शुरू किया तो धीरे-धीरे मेरे दिन आर्थिक रूप से सुधरने शुरू हो गये। इस वर्ष मेरे द्वारा उद्यान विभाग के एवं एन0एच0आर0 डी0एफ0 के सहयोग से चार बीघा लहसुन की खेती वर्तमान में कर रखा हॅू। मुख्य फसल के रूप में आमदनी मिल रही है। विभाग द्वारा जैन इरीगेशन सिस्टम लि0 से इस वर्ष ड्रिप लगवाया गया है। जिसको देखकर गांव के मेरे मित्र श्री शशिभूषण, श्री सुरेश, राकेश सिंह, श्री अरविन्द्र कुमार एवं अशोक वर्मा भी लहसुन एवं टमाटर की खेती कर आमदनी ले रहे हैं।
11 पारिवारिक स्थिति मेरे परिवार में इस समय तीन पुत्री एवं 2 पुत्र का परिवार है जिनकी पढ़ाई लिखाई एवं उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति मध्यम स्तर की मेरे द्वारा खेती के द्वारा कमाई गयी आमदनी से किया जाता है। इस समय तीन बच्चे स्नातक में तथा एक हाई स्कूल मंे एवं सबसे छोटा पुत्र अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढाई कर रहा है। मेरा मकान पक्का हो गया है तथा मोटर साइकिल एवं ट्यूबवेल मेरे पास अपना निजी हो गया है।